"सुखाय दुःखाय च नैव देवाः न चापि कालः सुह्र्दोडरयो वा ।
भवेत्परं मानसमेव जन्तोः संसारचक्रभ्रमणैकहेतुः ॥"
अर्थात - "देव सुख या दुःख नहीं देते, काल भी मित्र या शत्रु नहीं है, वास्तव में मानव का मन ही वह कारण है जो संसार के चक्र में भ्रमण कराता रहता है ।"
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