"विभवे भोजने दाने तिष्ठन्ति प्रियवादिनः।
विपत्ते चागते अन्यत्र दृश्यन्ते खलु साधवः।।"
अर्थात - "मनुष्य के सुख-समृद्धि के समय, खान-पान और मान के समय, प्रिय बातें करने वालों की भीड़ लगी रहती है । परंतु विपत्ति के समय केवल सज्जन पुरुष ही साथ दिखाई पड़ते हैं ।"
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