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Writer's pictureShwetanshu Ranjan

सनातन ज्ञानकोष

"यद्यदेव प्रसक्तं हि वितर्कयति मानवः ।

अभ्यासात्तेन तेनास्य नतिर्भवति चेतसः।।"

अर्थात - "मनुष्य जिस-जिस वस्तु का लगातार चिंतन करता है, अभ्यासवश उसी की ओर उसके मन का झुकाव होता जाता है ।"

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