Shwetanshu RanjanJan 22, 20231 min readसनातन ज्ञानकोष"यद्यदेव प्रसक्तं हि वितर्कयति मानवः ।अभ्यासात्तेन तेनास्य नतिर्भवति चेतसः।।"अर्थात - "मनुष्य जिस-जिस वस्तु का लगातार चिंतन करता है, अभ्यासवश उसी की ओर उसके मन का झुकाव होता जाता है ।"
"यद्यदेव प्रसक्तं हि वितर्कयति मानवः ।अभ्यासात्तेन तेनास्य नतिर्भवति चेतसः।।"अर्थात - "मनुष्य जिस-जिस वस्तु का लगातार चिंतन करता है, अभ्यासवश उसी की ओर उसके मन का झुकाव होता जाता है ।"
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