"बहति विषधरान् पटीरजन्मा शिरसि मषीपटलं दधाति दीपः ।
विधुरपि भकजतेतरां कलंकम् पिशुनजनं खलु बिभ्रति क्षितीन्द्राः ॥"
अर्थात - "चंदन विषैले सर्प को समीप रखता है, दीपक अपने मस्तक पर काजल धारण करता है, चंद्र पर भी कलंक है । वैसे ही राजा दुष्ट को समीप रखता है ।"
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