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Writer's pictureShwetanshu Ranjan

सनातन ज्ञानकोष

अगम्यं नटं योगिभिर्दण्डपाणिं प्रसन्नाननं व्योमकेशं भयघ्नम्।स्तुतं ब्रह्ममायादिभिः पादकञ्जं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।

जो योगिजनों के लिए भी अगम्य हैं, जो नाट्य कला में प्रवीण हैं, दण्डपाणि हैं, प्रसन्नमुख हैं तथा जिनके केश (किरण) व्योम (आकाश) तक व्याप्त हैं,जो भयों का नाश करने वाले हैं, जिनके चरण कमलों की स्तुति ब्रह्मा और माया आदि करते हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करने वाले विश्व के स्वामी भगवान विश्वनाथ का मैं भजन करता हूं।।

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