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Writer's pictureShwetanshu Ranjan

सनातन ज्ञानकोष

"सुसूक्ष्मेणापि रंध्रेण प्रविश्याभ्यंतरं रिपु:।

नाशयेत् च शनै: पश्चात् प्लवं सलिलपूरवत्।"


अर्थात - "नाव में जल पतले छेद से भीतर आने लगता है और भर कर उसे डूबा देता है, उसी तरह शत्रु को घुसने का छोटा मार्ग या कोई भेद मिल जाए तो उसी से भीतर आ कर वह कबाड़ कर ही देता है।"

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